कई आर आपने सुना होगा की सरकार स्पेक्ट्रम नीलाम करने वाली है, या सुना होगा की इस टेलीकॉम कंपनी ने इतना स्पेक्ट्रम खरीद है। 2g, 3g और 4g स्पेक्ट्रम अब तक नीलाम किया गया है और अब सरकार 5g स्पेक्ट्रम नीलाम करने की तैयारी कर रही है। परंतु यह स्पेक्ट्रम या स्पेक्ट्रम की नीलामी होता क्या है? क्या स्पेक्ट्रम कोई चीज़, वस्तु या सर्विस है?
तो स्पेक्ट्रम की नीलामी से पहले आप स्पेक्ट्रम को समझ ले।
जैसा आप जानते होंगे हमारे आस-पास कई सारी डिवाइस है जो वायरलेस कनेक्टेड है और रेडियो वेब्स पर काम करती है जैसे टीवी, रिमोट, वाईफाई राऊटर, मोबाइल फोन, रेडियो इत्यादि। और जब भी कोई वायरलेस डिवाइस काम करता है तो वह अपना एक अलग रेडिओ वेब्स पर काम करता है। जैसे अगर हम रिमोट को काम में लेते है, तो वह एक अलग रेडियो वेब्स निकलता है जो उससे कनेक्टेड डिवाइस समझता है, वही सिर्फ रिस्पांड करता है। वही दूसरी ओर अगर एक वाईफाई राऊटर है तो वह अपना एक अलग रेडियो वेब्स निकलती है जो उससे कनेक्टेड डिवाइस समझते है। अगर इन सब डिवाइस को एक ही तरह के रेडियो वेब्स पर काम करने को रखा जाए तो सभी रेडियो वेब्स आपस में टकरा जाएंगी और हमारे डिवाइस ठीक से काम नही कर पाएंगे।
कुछ ऐसे ही अगर कोई रेडियो चैनल, टीवी चैनल या मोबाइल नेटवर्क को काम करने के लिए अलग-अलग रेडियो वेब्स पर काम करना होता है। तो रेडियो वेब्स को के एक प्रकार को स्पेक्ट्रम कह सकते है। और जो भी रेडियो, टीवी या टेलीकॉम कंपनिया इस रेडियो वेब्स (स्पेक्ट्रम) का उपयोग करती है उन्हें सरकार को इसके लिए पैसे देने होते है।
और जब कोई नई टेक्नोलॉजी आती है जैसे 2g के बाद 3g उसके बाद 4g और अब आने वाला है 5g तो इसमे स्पेक्ट्रम रेडिसन ज्यादा होती है, और उस नेटवर्क पर काम करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों को उसका लाइसेंस लेना होता है, जिसे स्पेक्ट्रम की नीलामी कहते है। यहाँ जो कंपनी जितना ज्यादा पैसा सरकार को दे पति है उसे उतना ही ज्यादा स्पेक्ट्रम या कहे तो रेडियो वेब्स की जगह दी जाती है।
आशा करता हु आपके सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे। और सहायता के लिए निचे वीडियो देखे।👇
तो स्पेक्ट्रम की नीलामी से पहले आप स्पेक्ट्रम को समझ ले।
जैसा आप जानते होंगे हमारे आस-पास कई सारी डिवाइस है जो वायरलेस कनेक्टेड है और रेडियो वेब्स पर काम करती है जैसे टीवी, रिमोट, वाईफाई राऊटर, मोबाइल फोन, रेडियो इत्यादि। और जब भी कोई वायरलेस डिवाइस काम करता है तो वह अपना एक अलग रेडिओ वेब्स पर काम करता है। जैसे अगर हम रिमोट को काम में लेते है, तो वह एक अलग रेडियो वेब्स निकलता है जो उससे कनेक्टेड डिवाइस समझता है, वही सिर्फ रिस्पांड करता है। वही दूसरी ओर अगर एक वाईफाई राऊटर है तो वह अपना एक अलग रेडियो वेब्स निकलती है जो उससे कनेक्टेड डिवाइस समझते है। अगर इन सब डिवाइस को एक ही तरह के रेडियो वेब्स पर काम करने को रखा जाए तो सभी रेडियो वेब्स आपस में टकरा जाएंगी और हमारे डिवाइस ठीक से काम नही कर पाएंगे।
कुछ ऐसे ही अगर कोई रेडियो चैनल, टीवी चैनल या मोबाइल नेटवर्क को काम करने के लिए अलग-अलग रेडियो वेब्स पर काम करना होता है। तो रेडियो वेब्स को के एक प्रकार को स्पेक्ट्रम कह सकते है। और जो भी रेडियो, टीवी या टेलीकॉम कंपनिया इस रेडियो वेब्स (स्पेक्ट्रम) का उपयोग करती है उन्हें सरकार को इसके लिए पैसे देने होते है।
और जब कोई नई टेक्नोलॉजी आती है जैसे 2g के बाद 3g उसके बाद 4g और अब आने वाला है 5g तो इसमे स्पेक्ट्रम रेडिसन ज्यादा होती है, और उस नेटवर्क पर काम करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों को उसका लाइसेंस लेना होता है, जिसे स्पेक्ट्रम की नीलामी कहते है। यहाँ जो कंपनी जितना ज्यादा पैसा सरकार को दे पति है उसे उतना ही ज्यादा स्पेक्ट्रम या कहे तो रेडियो वेब्स की जगह दी जाती है।
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